Tuesday, May 24, 2016
Bijli Mahadev DARSHAN -TEMPLE ON HILL TOP IN KULLU HIMACHAL
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Saturday, May 21, 2016
महात्मा बुद्ध
महात्मा बुद्ध की जयंती , बुद्ध पूर्णिमा पर आप सभी मित्रों को हार्दिक शुभ कामनाएं आप सब का हर पल मंगलमय आइये महात्मा बुद्ध के जीवन से कुछ अनुसरण कर अपने जीवन को धन्य बनायें ................
भ्रमर ५
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कोई भी व्यक्ति सिर मुंडवाने से, या फिर उसके परिवार से, या फिर एक जाति में जनम लेने से संत नहीं बन जाता; जिस व्यक्ति में सच्चाई और विवेक होता है, वही धन्य है| वही संत है|
सभी बुराइयों से दूर रहने के लिए, अच्छाई का विकास कीजिए और अपने मन में अच्छे विचार रखिये-बुद्ध आपसे सिर्फ यही कहता है|
अगर व्यक्ति से कोई गलती हो जाती है तो कोशिश करें कि उसे दोहराऐं नहीं, उसमें आनन्द ढूँढने की कोशिश न करें, क्योंकि बुराई में डूबे रहना दुःख को न्योता देता है। ]
कम बोलने और अधिक सुनने का संकल्प लीजिए, सिर्फ बोलने से कभी किसी ने कुछ नहीं सीखा|
“उसने मेरा अपमान किया, मुझे कष्ट दिया, मुझे लूट लिया”-जो व्यक्ति जीवन भर इन्हीं बातों को लेकर शिकायत करते रहते हैं, वे कभी भी चैन से नहीं रह पाते, सुकून से वही व्यक्ति रहते हैं जो खुद को इन बातों से ऊपर उठा लेते हैं|
-गौतम बुद्ध
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
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Location:
Pratapgarh, Uttar Pradesh, India
Tuesday, May 17, 2016
गुमशुदा हूँ मैं
गुमशुदा हूँ मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’ है
क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा
बनाए..
लात मार दें हम
उनके
वे हमारे घरों को....
रिश्ते नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या
विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा है मुझे
झुकने नहीं देता
रावण सा
एक 'ओंकार' सच सुन्दर
मैं ही हूँ -
लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग' से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल है
आत्मविश्वास
ठहरता नहीं
कायर बना दिया है ....
सच को अब सच कहा
नहीं जाता
चापलूसी
चाटुकारिता शॉर्टकट
ज़िन्दगी की
आपाधापी की दौड़ में
नए आयाम हैं , पहचान हैं
मछली की आँख तो
दिखती नहीं
दिखती बस है
मंजिल...
परिणाम - शिखर
शून्य में ढ़केल
देता है फिर ..
शून्य - उधेड़बुन
चिंता - चिता
‘एकाकीपन’ तमगा
मिल जाता है
गले में लटकाए
निकल लेता हूँ
अपना ‘वजूद’
खोजने
शायद अब जाग जाऊं
‘गुमशुदा’ हूँ
मैं
सुरेन्द्र कुमार
शुक्ल भ्रमर ५
कुल्लू हिमांचल
प्रदेश
६/५/२०१६
१०:५० - ११;१५ पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
Location:
Karanpur, Uttar Pradesh 230001, India
Friday, May 6, 2016
जाने क्यों आती है खुशियां
जाने
क्यों आती है खुशियां
हरी भरी बगिया उपवन सब
गिरि कानन सब शांत खड़े थे
जोह रहे ज्यों बाट क्लांत मन
स्वागत आतुर बड़े खड़े थे
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आह्लादित भी मन में तन में
इंतजार कर ऊब रहे थे
लाखों सपने नैना तरते
पुलकित हो बस सोच रहे थे
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रोमांचित मन सिरहन वे पल
साँसे लम्बी कुछ पीड़ा थी
उपजी प्रकृति मूर्त रूप वो
बढ़ती सम्मुख सुख बेला थी
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गात हुए मन हहर - हहर कर
गोदी भर- भर खूब दुलारे
मन करता बस हृदय में भरकर
मूंदे नैना स्नेह लुटा
दे
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हलचल बड़ी अनोखी अब तो
पकडे ऊँगली हमें खिलाती
नाना रूप धरे बचपन के
बड़ी छकाती- खूब हंसाती -कभी रुलाती
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बड़ी हुई यौवन रस छलका
मलयानिल खुशबू ले धायी
चारों ओर नशा मादकता
नृत्य खुमारी हर मन छाई
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प्रेम पगा हर मन में खुशियां
चाह हमारी बन रह
जाये
मधुर-मधुर सुर की
मलिका वो
जीवन- संगीत मेरे संग
गाए
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पगली बदली नयनन सर सरके
अल्हड सरिता सी बहती जाये
साध निशाना काम-रति के
छलनी दिल के अति मन भाये
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किये कल्पना नयनन आती
दिल में वो गुदगुदी मचाती
मूक अवाक् ये आनन्दित मन
नाच उठे जब रास रचाती
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गिरि कानन तरुवर सब झूमे
फुल्ल कुसुम शोभित रस फूले
आनंदी संग पेंच पतंगे
ज्यों सावन के पड़े
हो झूले
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मन मयूर हर क्षण अब नाचे
नया नया सा हर कुछ लागे
रूप निखर बहु बाण चलाये
हर मन ईर्ष्या भर भी जाये
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ये स्वतंत्र स्वछन्द बहुत है
हाथ किसी के ना आएगी
परी खूबसूरत पंछी है
तड़पा करके उड़ जाएगी
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उसका कोमल गात है प्यारा
छूकर हरे वेदना सारी
चन्दन सी जाएगी महका
घर आँगन फुलवारी सारी
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आलिंगन कर गदगद करती
जिया हिया हर पैठ बनाती
झांके नैनो में कुछ कहती
छूट न जाये कोई भी ‘प्रिय’ -बढ़ती जाती
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ह्रदय सिंधु फिर रोक न
पाया
लहरें हहर उठी अंतर में
अरे ! विदाई का क्षण आया
फूटा झरना नयनन मन से
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जाने क्यों आती है खुशियां
खुश करके फिर बड़ा रुलाती
परिवर्तन ही नियम प्रकृति का
उपजे खेले फिर मिट जाती
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
५/५/२०१६ ५.४० अपराह्न
कुल्लू हिमाचल प्रदेश .
Location:
Karanpur, Uttar Pradesh 230001, India
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